भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
जो तुमको अच्छा लगता है
तुमने वही समझना चाहा
चाहे वहअस्तित्वविहीन होलेकिन उसको कब समझोगे जो यथार्थ है लेकिन रुचिकर तुम्हे न लगता. यह दुनिया हैयहाँ तुम्हारे अच्छा लगने से तो काम नहीं चल सकता.</poem>