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|रचनाकार=कीर्ति चौधरी|संग्रह=}} {{KKCatNavgeet}}<poem>
फूल झर गए।
क्षण-भर की ही तो देरी थी
अभी-अभी तो दृष्टि फेरी थी- इतने में सौरभ के प्राण हर गए;।फूल झर गए। गए ।
दिन-दो दिन जीने की बात थी,
आख़िर तो खानी ही मात थी;
फिर भी मुरझाए तो व्यथा हर गए
फूल झर गए ।
फूलों-सम आओ, हँस हम भी झरेंरंगों के बीच ही जिएँ औ’ मरेंपुष्प अरे गए, किंतु खिलकर गए । फूल झर गए।गए ।</poem>