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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश कौशिक |संग्रह=चाहते तो... / रमेश कौशिक }} <poem> आं…
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{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश कौशिक
|संग्रह=चाहते तो... / रमेश कौशिक
}}
<poem>
आंखें - थीं
किन्तु देखती न् थीं
कान- थे
किन्तु सुनते न् थे
मुंह - था
किन्तु बोलता न था
मेरे हाथों में बंदूक थी
और सामने एक लाश
इसीलिए ह्त्या का आरोप
मुझ पर था
बंदूक किसने दी
मैं नहीं जानता
ट्रिगर किसने दबाया
मैं नहीं जानता
गोली की आवाज़
मैंने नहीं सुनी
जो मरा उससे अपरिचित हूं
बचाव की उम्मीद कैसे
करूँ
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|रचनाकार=रमेश कौशिक
|संग्रह=चाहते तो... / रमेश कौशिक
}}
<poem>
आंखें - थीं
किन्तु देखती न् थीं
कान- थे
किन्तु सुनते न् थे
मुंह - था
किन्तु बोलता न था
मेरे हाथों में बंदूक थी
और सामने एक लाश
इसीलिए ह्त्या का आरोप
मुझ पर था
बंदूक किसने दी
मैं नहीं जानता
ट्रिगर किसने दबाया
मैं नहीं जानता
गोली की आवाज़
मैंने नहीं सुनी
जो मरा उससे अपरिचित हूं
बचाव की उम्मीद कैसे
करूँ