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{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश कौशिक
|संग्रह=चाहते तो... / रमेश कौशिक
}}
<poem>
उखड़ती हुई दिशाएँ
टूटते हुए प्रश्न
नसों में चलती हुई चीटियाँ
भय-आशंका
खाई-खंदक
विस्फोट-चीत्कार
सायरन से नियंत्रित
जन सामान्य का संसार
नहीं नहीं
हमने इधर आने को
नहीं कहा था
किस पर हस्ताक्षर किये थे
वह यह अनुबंध नहीं था
</poem>
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|रचनाकार=रमेश कौशिक
|संग्रह=चाहते तो... / रमेश कौशिक
}}
<poem>
उखड़ती हुई दिशाएँ
टूटते हुए प्रश्न
नसों में चलती हुई चीटियाँ
भय-आशंका
खाई-खंदक
विस्फोट-चीत्कार
सायरन से नियंत्रित
जन सामान्य का संसार
नहीं नहीं
हमने इधर आने को
नहीं कहा था
किस पर हस्ताक्षर किये थे
वह यह अनुबंध नहीं था
</poem>