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|रचनाकार=वीरेन डंगवाल
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<poem>

वसन्‍त आ गया है
खिले हैं ये चटक पीले फूल
गीतों के बाहर भीः

'मैं तुम्‍हें प्‍यार करता हूं'-

जोर से बोल देना चाहता हूं मैं भी
नीचे घाटी की ओर मुंह करके
'तुम्‍हें प्‍यार करता हूं
ओ मुरी सुआ
ओ मेरी पींजरा
ओ मेरे प्राणों की चोर जेब!...'
बोल देना चाहता हूं मैं पर बोलता नहीं

साठ की वय एक लम्‍बा पेंच है
जिसका नोकीला सिरा घूम कर तिरछा धंसा हुआ
ईश्‍वर के माथे पर.
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