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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रदीप जिलवाने
|संग्रह=
}}
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अरसे बाद
वह सोया भरोसे की नींद
जागा अपनों के बीच
अरसे बाद
चार के बीच बैठ गपियाया कुछ देर
और सेंके अलाव में हाथ
अरसे बाद
चखा कच्चे अमरूद का स्वाद
और उसपर चिपकी मिट्टी का भी
अरसे बाद
लौटी उसके चेहरे पर
उसकी मौलिक खिलंदड़ हँसी
अरसे बाद
उसे लगा कि बाकी है
उसका अभी वजूद कहीं।
00
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|रचनाकार=प्रदीप जिलवाने
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अरसे बाद
वह सोया भरोसे की नींद
जागा अपनों के बीच
अरसे बाद
चार के बीच बैठ गपियाया कुछ देर
और सेंके अलाव में हाथ
अरसे बाद
चखा कच्चे अमरूद का स्वाद
और उसपर चिपकी मिट्टी का भी
अरसे बाद
लौटी उसके चेहरे पर
उसकी मौलिक खिलंदड़ हँसी
अरसे बाद
उसे लगा कि बाकी है
उसका अभी वजूद कहीं।
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