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तुमसे-एक / रेणु हुसैन

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तुमसे बिछड़कर लगता है

छोटे से जीवन की खुशियां
चली गई सब साथ तुम्हारे

हर लमहा वीरां, तन्हां सा
तुमको खोजे, तुम्हें पुकारे

जैसे किसी सहरा में दिल ये
राह भटक जाए

उफ्। ये अकेलापन ज़ालिम-सा
बहुत रुलाये, बहुत सताये

वक़्त तो जैसे ठहर ही जाये
नहीं बिताया जाये

कोई सपना बिना तुम्हारे
नहीं सजाया जाये

नींद हमारी बस जाती है
एक तुम्हारी याद में
<poem>
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