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सुबह / रेणु हुसैन

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<poem>

चांदनी-सी चाहत तुम्हारी
महक बनकर
फैल जाती है मेरे चारों ओर

रात होती है
तो बस जाती है आंखों में
जागते हुए एक ख्वाब-सा
देखती हूं मैं

तुम्हारी यादों की महक में
डूब जाती है मेरी नींद
ओस पड़ जाती है
मेरे चेहरे पर

इस तरह मेरी ज़िंदगी में
चाहत के झरने से निकलकर
चुपके-चुपके
सुबहा आती है
<poem>
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