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नदी के नाम / सांवर दइया

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नया पृष्ठ: <poem>पहाड़ों से टकराती बल खाती इठलाती चली आ रही नदी कभी मंद कभी द्रु…
<poem>पहाड़ों से
टकराती
बल खाती
इठलाती
चली आ रही नदी
कभी मंद
कभी द्रुत गति से
हर किसी की प्यास बुझाती

मैं भी खड़ा था किनारे
लेकिन
मुझे तो
पानी की एक बूंद
न दी
मैं किस मुँह से कहूँ
तुम नदी हो !

</poem>
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