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<poem>
उसके उनींदे अलसाए अकेलेपन में
मर्द-हथियारों के अन्यत्र होने पर,
वह कुख्यात छापामार दल-बल समेत
चौतरफा आ-दबोचता है उसे
चोरी-छुपे, चुपके से नहीं
बल्कि दहाड़ता-फुफकारता हुआ,
औचक सैकड़ों दिशाओं से
 वह भीटरभीतर-बाहर निस्सहाय
सहमी-सहमी निरुपाय
आखिर, करे तो क्या करे
आ-धमकने से पहले
काट दी थी
टेलीफोन और बिजली की लाइनें ,
भींचकर सूरज को मुट्ठी में
कर दिया था घुप्प अन्धेरा,
मन-बहलाते उसके खग-मित्रों को
जहरीली फुफकारों से अचेत धराशाई कर दिया था,रक्षक जटायुओं के काट डाले थे पंख --
बजाकर विध्वंसक ताण्डवी शंख,
उनके थरथराते घोसलों को बाजुओं में जकड़
धुआंधार घात-प्रतिघात से
कर दिया था बेदम-बेज़ार,
नीचे धुल चाटने लगे थे
चौखटों से टूटे दरवाज़े-पल्ले
कुटिल आँखों से लूट-खसोट रहा था
बिचारी निर्जीव, नि:शब्द, नि:शक्त
सहती रही ज्यादतियाँ
जो वह करता रहा निर्विघ्न बेरोकटोक
जी-भर मनमाना करने
हवासी हवसी जोश के पस्त होने
और अपने विजयोन्मत्त सैन्यबल द्वारा
हथियारों को राहत बख्शने के बाद