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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार रवींद्र
}}
[[Category:गीत]]{{KKCatNavgeet}}<poem>बैठी छज्जे पर चिडया <br>चिड़या जाने किसको <br>टेर रही है <br>बैठी छज्जे पर चिडया <br><br>चिड़या
हमने बहुत बार देखा <br>उसको आते-जाते घर में <br>उडती उड़ती फिरती -- <br>पता नहीं कितनी ताकत <br>ताक़त उसके पर में <br><br>
तिनके-तिनके <br>धूप हवा में <br>बिखराती दिन - भर चिडया <br><br>चिड़या
यह चिडया चिड़या सूरज की बेटी <br>इसके पंख सुनहले हैं <br>जोत उन्हीं की <br>जिससे दमके <br>सारे महल-दुमहले हैं <br><br>
मंदिर में <br>आरती जगाती <br>रोज सुबह आकर चिडया <br><br>चिड़या
चमक रहे हीरे-पन्ने <br>चिडया चिड़या की उजली आँखों में<br> रात हुए <br>है यही दमकती<br> आम-नीम की शाखों में <br><br>
आधी-रात <br>चन्द्रमा उगता <br>होती इच्छाघर चिडया।चिड़या।</poem>
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