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Kavita Kosh से
नये भोर की वेला साथी -
तुम जागो - मुस्काओ ।
सपनों के विषधर समेट कर
लौट चली विष-कन्या रजनी,
भीनी गूँज भँवर की
उड़े पंछियों के कलरव सा -
तुम स्रुर सुर साधो, गाओ।
नीचे का सूरज उठ आया