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{{KKRachna
|रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद
|संग्रह=मैं नहीं था लिखते समय / गोबिन्द प्रसाद
}}
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<poem>
जब बाज़ार गया था
तो इच्छाओं का खेत था
आँखों में
लहराता हुआ सपनों का समुद्र था
बाज़ार से लौटा हूँ अब
तो घर-गॄहस्थी की इच्छा
सपना बनकर सामने खड़ी है
मुझे डर है मेरे पीछे बाज़ार से लौटने वाला
मेरा पड़ोसी
सपना न बन जाए
<poem>
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|रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद
|संग्रह=मैं नहीं था लिखते समय / गोबिन्द प्रसाद
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जब बाज़ार गया था
तो इच्छाओं का खेत था
आँखों में
लहराता हुआ सपनों का समुद्र था
बाज़ार से लौटा हूँ अब
तो घर-गॄहस्थी की इच्छा
सपना बनकर सामने खड़ी है
मुझे डर है मेरे पीछे बाज़ार से लौटने वाला
मेरा पड़ोसी
सपना न बन जाए
<poem>