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|रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद
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<poem>

दु:ख
झर रहा है
शब्द की माया में

धर रहा है
अपने को वह रूप
नि:शब्द की काया में

गीत में
भटक कर बार-बार
उतर रहा है
एक अतिन्द्रीय
पहचान से परे; बेआबाज़
पर-छाया में
<poem>
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