भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> '''खरे उतरते …
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
'''खरे उतरते लोग'''
ठोंकरों से
एहतियात बरतते लोग
सहर्ष बढ़ते जाते हैं
मंजिल की प्रतिध्वनित दिशा में
और खरे उतर जाते हैं
बेदम होने तक
भटकाव को
मंजिल समझने की नियति पर

फरेबी आशिक से
पिंड छुड़ाती लड़की
बड़ी आस्था से
खरी उतर जाती है
अपने ट्यूटर की हवस पर

बाजारू जहर से छले गए
स्वैच्छिक आत्महत्यारे
विदेशी साजिशों को धता बता
अमोघ राष्ट्रीय घात-तंत्र के तहत
खरे उतर जाते हैं
सुविख्यात राष्ट्रभक्तों के
रिमोट-नियंत्रित धमाकों पर

जेबकतरों से किनारा करते
कुंजहन-काइंए सेठ
खरे उतर जाते हैं
अपनी मक्कार बीवी के चोर इरादों पर

फराखदिल दुश्मनों की चेतावनियों को
षडयंत्र समझते लोग
वफादार दोस्तों के लाक्षागृहों में
आमंत्रित प्रीतिभोजों में
खरे उतर जाते हैं
छद्म अग्निकांड पर.