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|रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद
|संग्रह=मैं नहीं था लिखते समय / गोबिन्द प्रसाद
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उँघ रही है
तने सी
दोपहर की छाया
जैसिए पसरी होकर
देह
<poem>
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तने सी
दोपहर की छाया
जैसिए पसरी होकर
देह
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