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|रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद
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<poem>

हँसने के लिए
रोता रहा तमाम उम्र
और जब हसने की घड़ी आई
तब हँसना तो दूर
ढंग से मैं रोना भी भूल चुका था
<poem>
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