भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वृक्‍क / वीरेन डंगवाल

1,581 bytes added, 08:14, 6 जुलाई 2010
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन डंगवाल |संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल }} …
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन डंगवाल
|संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल
}}
<poem>

वृक्‍क कहने से बात ही बदल जाती है
गुर्दे तो बकरे के भी होते हैं

अपने पीछे ही डॉक्‍टर ने
लगाया हुआ है वह लाल-नीला नक्‍शा
जिसमें सेम के बीच जैसे वृक्‍कों की आंतरिक संरचना
बड़ी सफाई से दिखाई गई है
तुम डॉक्‍टर से बातें करते हुए भी
देख लेते हो कि
कितनी चक्‍करदार गलियों से
छनने के बाद
देह में दौड़ता है खून और उत्‍सर्जन के रास्‍ते पर जाता है पेशाब

सारी खतरनाक सचाइयां इतनी ही आसान होती हैं
सारी अतीव सुंदरताएं भी
अलबत्‍ता उन्‍हें आसान बनाने का काम
बेइन्तिहा जटिल होता है
और स्‍वस्‍थ गुर्दों वाले प्रसन्‍न ज्ञानी ही उसे अंजाम दे पाते हैं
00
778
edits