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हाइकु कविताएँ / जगदीश व्योम

193 bytes removed, 07:36, 1 सितम्बर 2013
|रचनाकार=जगदीश व्योम
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[[Category:हाइकु]]
<poem>
 
 
उगने लगे
कंकरीट के वन
उदास मन !
   *
धूप के पाँव
थके अनमने से
बैठे सहमे।
   *
मरने न दो
परम्पराओं को कभी
बचोगे तभी।
   *
छिड़ा जो युद्ध
रोयेगी मानवता
हँसगे गिद्ध।
   *
कुछ कम हो
शायद ये कुहासा
यही प्रत्याशा।
   *
मिलने भी दो
राम और ईसा को
भिन्न हैं कहाँ !
   *
बिना धुरी के
घूम रही है चक्की
पिसेंगे सब।
    *
चींटी बने हो
रौंदे तो जाआगे ही
रोना धोना क्यों?
   *
सूर्य के पाँव
चूमकर सो गए
गाँव के गाँव।
   *
यूँ ही न बहो
पर्वत–सा ठहरो
मन की कहो।
   *
पतंग उड़ी
डोर कटी‚ बिछुड़ी
फिर न मिली।
   *
बूढा. सूरज
झेलेगा कब तक
तम के दंश।
   *
निगल गई
सदियों का सृजन
क्रोधित धरा।
   *
मुढ़ैठा बाँधे
अकड़ा खड़ा चना
माटी का बेटा।
   *
धूप गौरैया
उतरती छज्जे से
आँगन बीच !
    *
थका सूरज
ढहा देगा फिर भी
तम का दुर्ग।
   *
पीटता नभ
बिजली के कोढ़े से
रोता बादल !
   *
रोज ले आती
गौरैया घास-फूस
फेंक देती माँ !
    *
साँझ होते ही
बैठता आसन पे
ऋषि सूरज।
   *
गंध के बोरे
लाता है ढो ढोकर
हवा का घोड़ा।
   *
ओस की बूँद
कैक्टस पर बैठी
शूली पे सन्त !
   *
अनाम गन्ध
बिखेर रही हवा
धान के खेत।
   *
हाइकु हंस
हौले से हवा हुआ
काँपा शैवाल।
    *
क्यों तू उदास
दूब अभी है ज़िन्दा
पिक कूकेगा ।
    *
शहरी चक्की
लोकगीत पीसना
अबाध गति।
    *
सहम गई
फुदकती गौरैया
शुभ नहीं ये।
    *
लोक रोपता
महाकाव्य की पौध
लुनता कवि।
   *
बादल रोया
धरती भी उमगी
फसल उगी।
   *
स्वागत हुआ
दूब–धान आया
लोक जीवन।
   *
नदी बनाता
सोख हवा से नमीं
वृद्ध पहाड़।
   *
छीन लेता है
धनी मेघों से जल
दानी पहाड़।
    *
रात सिसकी
दूब ने सजा लिए
कई हाइकु।
 
 
</poem>
 
 
यूट्यूब पर वीडियो लिंक-
 
http://www.youtube.com/watch?v=C0Hf11RRil8