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हिमाला / इक़बाल

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छेड़ती जा इस इराक़े-दिलनशीं के राज़ को
ऐ मुसाफ़िर ! दिल समझता है तेरी आवाज़ को
लैली-ए-सब शब खोलती है आके आ के जब ज़ुल्फ़े -रसा<ref>सम्पूर्ण केशराशिकेश-राशि</ref>
दामने-दिल खींचती है आबशारों<ref>झरनों</ref> की सदा