Changes

हिमाला / इक़बाल

1 byte removed, 05:31, 8 जुलाई 2010
ऐ मुसाफ़िर! दिल समझता है तेरी आवाज़ को
लैली-ए-शब खोलती है आ के जब ज़ुल्फ़े -रसा<ref>सम्पूर्ण केश-राशि</ref>
दामने-दिल खींचती है आबशारों<ref>झरनों</ref> की सदा