भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
}}{{KKVID|v=Aryiy9N3vNY}}
<poem>
राम बनवास से लौटकर जब लौटकर घर में आये
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आये
रक्से-दीवानगी आंगन में जो देखा होगा
छह दिसम्बर को श्रीराम ने सोचा होगा
इतने दीवाने कहां से मेरे घर में आये
धर्म क्या उनका है, क्या जात है ये जानता कौन
घर ना जलता तो उन्हे रात में पहचानता कौन
घर जलाने को मेरा, लोग जो घर में आये
शाकाहारी हैं मेरे दोस्त, तुम्हारे खन्ज़र
तुमने बाबर की तरफ़ फ़ैंके थे सारे पत्थर
है मेरे सर की खता, ज़ख्म जो सर में आये
पांव सरयू में अभी राम ने धोये भी न थे
कि नज़र आये वहां खून के गहरे धब्बे