भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहनानन्‍द / वीरेन डंगवाल

430 bytes added, 11:07, 9 जुलाई 2010
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन डंगवाल |संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल }} …
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन डंगवाल
|संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल
}}
<poem>

अपनी ही देह
मजे देवे
अपना ही जिस्‍म
सताता है

यह बात कोई
न नवीं, नक्‍को
आनन्‍द जरा-सा
कहन का है.
00
778
edits