भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बोध / मनोज श्रीवास्तव

411 bytes added, 11:35, 9 जुलाई 2010
<poem>
''' बोध ''' महास्वप्न कीवृत्ताकार जीवनमयता में ठोस वायव अस्तित्त्व का कटु यथार्थ भोग रहा हूं कितना सच हैं--सतत चढाव से सीमाबद्ध यह जैविक अवसानयह पतनयह बोध यह उन्माद!