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{{KKRachna
|रचनाकार=संजय चतुर्वेदी
|संग्रह=प्रकाशवर्ष / संजय चतुर्वेदी
}}
<Poem>
आप जब इस गांव में आयेंगे
तो गांव के बाहर एक आदमी मिलेगा
दूर से वह आपको देखने लगेगा
और पास जाने पर
‘हां !’ या ‘नहीं !’ में जवाब देगा
आपसे थोड़ी दूर वह
आपके पीछे-पीछे चलेगा
आपके कपड़ों को
संदिग्ध दृष्टि से देखता हुआ
आप ग्राम-प्रधान के घर जाएंगे
और वहां आपको तैयार मिलेगा कोई
दूध में धुली जाति के संस्कार लिये
उससे आपको पता चलेगा
उसकी बिरादरी के भोलेपन का
आप दूसरे घरों में जाएंगे
वहां आपको मिलेंगे
कुत्ते
टूटी चारपाइयां
और बच्चे
बोझ से दबे हुए
और मां-बाप
जिन्दगी से उकताए हुए
आप जब गांव से बाहर निकलेंगे
वही आदमी आपके पीछे-पीछे जाएगा
और एक जगह रूक जाएगा
बिना किसी उम्मीद के
आप दोबारा गांव नहीं जाएंगे
वह आपका इंतजार नहीं करेगा.
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{{KKRachna
|रचनाकार=संजय चतुर्वेदी
|संग्रह=प्रकाशवर्ष / संजय चतुर्वेदी
}}
<Poem>
आप जब इस गांव में आयेंगे
तो गांव के बाहर एक आदमी मिलेगा
दूर से वह आपको देखने लगेगा
और पास जाने पर
‘हां !’ या ‘नहीं !’ में जवाब देगा
आपसे थोड़ी दूर वह
आपके पीछे-पीछे चलेगा
आपके कपड़ों को
संदिग्ध दृष्टि से देखता हुआ
आप ग्राम-प्रधान के घर जाएंगे
और वहां आपको तैयार मिलेगा कोई
दूध में धुली जाति के संस्कार लिये
उससे आपको पता चलेगा
उसकी बिरादरी के भोलेपन का
आप दूसरे घरों में जाएंगे
वहां आपको मिलेंगे
कुत्ते
टूटी चारपाइयां
और बच्चे
बोझ से दबे हुए
और मां-बाप
जिन्दगी से उकताए हुए
आप जब गांव से बाहर निकलेंगे
वही आदमी आपके पीछे-पीछे जाएगा
और एक जगह रूक जाएगा
बिना किसी उम्मीद के
आप दोबारा गांव नहीं जाएंगे
वह आपका इंतजार नहीं करेगा.
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