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Kavita Kosh से
भुतहे खँडहर में तब्दील हो जाएँगी,
विकास के नाम पर
खंडहरों पर कालकल-कारखाने उगेंगे,
कवितायेँ ज़मींदोज़ हो जाएँगी
विकास की भेंट चढ़ जाएँगी