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Kavita Kosh से
गाती फिरती चिड़िया
पत्तों की छाँव में घोंसला
देखती आँखें भर जाती
स्वप्नों से
पर केवल देखती ही नहीं
वह तो झेलती है
पल-पल दूसरा ही.