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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संकल्प शर्मा |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> खलिश की इन्तह…
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{{KKRachna
|रचनाकार=संकल्प शर्मा
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
खलिश की इन्तहा देखी है तुमने?
निगाहों की खता देखी है तुमने?
मेरे सीने का खालीपन पता है?
मेरे दिल की खला देखी है तुमने?
तुम्हें कैसे दिखाऊं अपनी आहें?
कहो तो! क्या हवा देखी है तुमने?
तुम्हें मालूम कैसे ख़त्म होगा?
सफर की इब्तेदा देखी है तुमने?
मेरे जी मैं जो है यूँ ही नहीं है,
कसक यूँ बेवजह देखी है तुमने?
मैं बेबस था यही मेरी खता थी,
खता की ये सज़ा देखी है तुमने?
फिराक ऐ यार जो सहते हैं उनके,
लबों पे इल्तेज़ा देखी हैं तुमने?
नज़र रखते हो हर हरकत पे मेरी,
मेरे लब पे दुआ देखी है तुमने?
बहुत मग़रूर हैं ये हसरतें भी,
कभी इनकी अदा देखी है तुमने?
</poem>
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|रचनाकार=संकल्प शर्मा
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
खलिश की इन्तहा देखी है तुमने?
निगाहों की खता देखी है तुमने?
मेरे सीने का खालीपन पता है?
मेरे दिल की खला देखी है तुमने?
तुम्हें कैसे दिखाऊं अपनी आहें?
कहो तो! क्या हवा देखी है तुमने?
तुम्हें मालूम कैसे ख़त्म होगा?
सफर की इब्तेदा देखी है तुमने?
मेरे जी मैं जो है यूँ ही नहीं है,
कसक यूँ बेवजह देखी है तुमने?
मैं बेबस था यही मेरी खता थी,
खता की ये सज़ा देखी है तुमने?
फिराक ऐ यार जो सहते हैं उनके,
लबों पे इल्तेज़ा देखी हैं तुमने?
नज़र रखते हो हर हरकत पे मेरी,
मेरे लब पे दुआ देखी है तुमने?
बहुत मग़रूर हैं ये हसरतें भी,
कभी इनकी अदा देखी है तुमने?
</poem>