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ज़ुल्मतकदे में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है <br>इक शम्मा है दलील-ए-सहर, सो ख़मोश है <br><br>
ना मुज़्दा-ए-विसाल न नज़्ज़ारा-ए-जमाल <br>मुद्दत हुई कि आश्ती-ए-चश्म-ओ-गोश है <br><br>
मै ने किया है हुस्न-ए-ख़ुदआर को बेहिजाब <br>अए शौक़ याँ इजाज़त-ए-तस्लीम-ए-होश है <br><br>
गौहर को इक्द-ए-गर्दन-ए-ख़ुबाँ में देखना <br>क्या औज पर सितारा-ए-गौहरफ़रोश है <br><br>
दीदार, वादा, हौसला, साक़ी, निगाह-ए-मस्त <br>बज़्म-ए-ख़याल मैकदा-ए-बेख़रोश है <br><br>
अए ताज़ा वारिदन-ए-बिसात-ए-हवा-ए-दिल <br>ज़िंहार गर तुम्हें हवस-ए-न-ओ-नोश है <br><br>
देखो मुझे जो दीदा-ए-इबरतनिगाह हो <br>मेरी सुनो जो गोश-ए-नसीहतनियोश है <br><br>
साक़ी बजल्वा दुश्मन-ए-इमाँ-ओ-आगही <br>मुतरिब बनग़्मा रहज़न-ए-तम्कीन-ओ-होश है <br><br>
या शब को देखते थे कि हर गोशा-ए-बिसात <br>दामान-ए-बाग़बाँ-ओ-कफ़-ए-गुलफ़रोश है <br><br>
लुत्फ़-ए-ख़ीराम-ए-साक़ी-ओ-ज़ौक़-ए-सदा-ए-चंग <br>ये जन्नत-ए-निगाह वो फ़िर्दौस-ए-गोश है <br><br>
य सुभ दम जो देखीये आकर तो बज़्म में <br>ना वो सुरूर-ओ-सोज़ न जोश-ओ-ख़रोश है <br><br>
दाग़-ए-फ़िराक़-ए-सोहबत-ए-शब की जली हुई <br>इक शम्मा रह गई है सो वो भी ख़मोश है <br><br>
आते हैं ग़ैब से ये मज़ामी ख़याल में <br>"ग़ालिब", सरीर-ए-ख़ामा नवा-ए-सरोश है<br><br>