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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश मानस |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> दीप सा मन जलता रह…
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|रचनाकार=मुकेश मानस
|संग्रह=
}}
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दीप सा मन जलता रहा रात भर
स्नेह आँखों से झरता रहा रात भर
दूर तक मैंने तुमको पुकारा भी था
दे के आवाज़ तुमको पुकारा भी था
फिर भी पथ में अकेला मैं क्यों रह गया
इसी उलझन में उलझा रहा रात् भर, दीप सा मन……
हैं ठहरते सभी के यहीं पर कदम
सफ़र होता सभी का यहीं पर खत्म
सभी आये हैं आओगे तुम भी यहीं
इसी आशा में जगता रहा रात भर, दीप सा मन्………
1988
<poem>
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दीप सा मन जलता रहा रात भर
स्नेह आँखों से झरता रहा रात भर
दूर तक मैंने तुमको पुकारा भी था
दे के आवाज़ तुमको पुकारा भी था
फिर भी पथ में अकेला मैं क्यों रह गया
इसी उलझन में उलझा रहा रात् भर, दीप सा मन……
हैं ठहरते सभी के यहीं पर कदम
सफ़र होता सभी का यहीं पर खत्म
सभी आये हैं आओगे तुम भी यहीं
इसी आशा में जगता रहा रात भर, दीप सा मन्………
1988
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