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Kavita Kosh से
मेरे सरकश तराने सुन के दुनिया ये समझती है <br>
कि शायद मेरे दिल को इश्क़ के नग़्मों से नफ़रत है <br><br>
मुझे हंगामा-ए-जंग-ओ-जदल में कैफ़ मिलता है <br>
मेरी फ़ितरत को ख़ूँरेज़ी के अफ़सानों से रग़्बत है <br>मेरी दुनिया में कुछ वक्त नहीं है रक़्स-ओ-नग़्में की <br>मेरा महबूब नग़्मा शोर-ए-आहंग-ए-बग़ावत है <br>
मगर ऐ काश! देखें वो मेरी पुरसोज़ रातों को <br>
मैं जब तारों पे नज़रें गाड़कर आसूँ बहाता हूँ <br><br>
तसव्वुर बनके भूली वारदातें याद आती हैं <br>
तो सोज़-ओ-दर्द की शिद्दत से पहरों तिल्मिलाता हूँ <br><br>
कोई ख़्वाबों में ख़्वाबीदा उमंगों को जगाती है <br>
तो अपनी ज़िन्दगी को मौत के पहलू में पाता हूँ <br><br>
मैं शायर हूँ मुझे फ़ितरत के नज़्ज़ारों नज़ारों से उल्फ़त है <br>मेरा दिल दुश्मन-ए-नग़्मा-सराई हो नहीं सकता <br><br>
मुझे इन्सानियत का दर्द भी बख़्शा है क़ुदरत ने <br>
मेरा मक़सद फ़क़त शोला नवाई हो नहीं सकता <br>जवाँ हूँ मैं जवानी लग़्ज़िशों का एक तूफ़ाँ है <br>मेरी बातों में रन्ग-ए-पारसाई हो नहीं सकता <br>
मेरे सरकश तरानों की हक़ीक़त है तो इतनी है <br>
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