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''' एक नदी यह भी '''
जिन राजमार्गों, राजवीथियों पर
सभ्यताओं के फलने-फूलने पर
वहां लोग गुत्थम-गुत्थ बह रहे हैं
तरल बहते लोगों से संडाध सड़ांध उठ रही है
संस्कृतियों के कल्पतरुओं का कहीं अता-पता नहीं है,
आख़िर, जिन तरुओं की जड़ों में दीमक लग गए हों
दु:ख है की उनके अवशेष
नवपतन और नवविनाश के खाद भी न बन पाए -- उन विषैले, पुष्पहीन-फलहीन पौधों के ,
जिन्हें छूना तो घातक है ही
देखने-सूंघने भर से काँटे चुभ जाते हैं
आरम्भ से अंत तक प्रवाहमान हैं
जो कुछ यूँ लगता है कि जैसे
बूढ़ी लाशों के साथ व्यभिचार किया जा रहा हो
इन तरलजनों की बहते रहने की इच्छा ही
और तालियाँ बजाकर खुद का स्वागत करना
यही हमारी नियति है।
***'''धारवी''' मुम्बई स्थित एशिया की सबसे बड़ी स्लम कालोनी है.
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