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17:27, 19 जुलाई 2010
== शकीरा का वाका वाका
<poem>गुज़रती जा रही हो
भिगोती हुई
पानी की तेज लहर
रह रह कर
लगातार प्रज्वलित होती हुई
एक आग
सीसे को काटती हो
शहद की धार
ऐसी आवाज
अल्हड किशोरी का
छलकता हो आनंद
ऐसा नृत्य
बारिश का हो इंतजार
छमाछम बरसे
अचानक
सोंदर्य की देवी
आ गयी हो
मूर्ति से बाहर
इश्वर को कहा जाता है
पूर्ण एश्वर्य
तब लगा वह अपने स्त्री रूप में
प्रगट हुआ है
जब शकीरा ने
वाका वाका किवा
देखो
दावों को झुठलाते हुए
झलका है वह
अन्जान देश की लड़की
शकीरा में
</poem> ==