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Kavita Kosh से
मनहारी सकल स्रष्टि
लास्य दिग्दिगन्त छा गया
देखो बसन्त आ गया।गया ।
शीशम के तारुण्य का
सकुचायी शकुन्तला
मानो दुष्यन्त आ गया
देखो बसन्त आ गया।गया ।
पर्वत का ऊँचा शिखर
केशरिया वस्त्र पहन
मानों कोई सन्त आ गया
देखो बसन्त आ गया।।गया ।।
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