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मीरां / संतोष मायामोहन

138 bytes added, 20:18, 19 जुलाई 2010
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=संतोष मायामोहन |संग्रह=}}{{KKCatKavita‎}}<poemPoem>घर से निकल कर
घर-घर
नगर-नगर घूमना
तो थी अलग बात
 
स्त्री वस्त्रों से बाहर
नहीं निकाल सकती थी
हाथ अथवा अपना मन
उस वक्त वक़्त त्यागे तुम ने
महल और अटारी
जगाई पहली जोत -
नारी मुक्ति आंदोलन की ।
 
तुम तूठी थी दुनिया को
तुम्हें तूठा था कन्हाई !
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