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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार= साँवर दइया |संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poemPoem>गूंगा गुड़ के गीत गा रहा है
बहरा सराह रहा है
सजी सभा में
पंगुल पांव पाँव सहला कर बोला -मैं नाचूंगा नाचूँगा ।अंधा अँधा आगे आया
कड़क कर बोला -
तुमने ठेका ले रक्खा है
मुझे भी तो देखने दो !
कलाकार !
लो, संभालो सँभालो तुम्हारी कलम क़लम !
'''अनुवाद : मोहन आलोक'''
</poem>