भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार= साँवर दइया |संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poemPoem>धरती को
इसी तरह रौंदी-कुचली
देखता हूंहूँजव देखता हूं हूँ आकाश को
इसी तरह अकड़े-ऎंठे
देखता हूंहूँ
अब मैं
किस-किस से कहता फिरूंफिरूँआपना अपना दुख -यह धरती : मेरी मां माँ !
यह आकाश : मेरा पिता !
'''अनुवाद : नीरज दइया'''
</poem>