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जब देखता हूं / सांवर दइया

127 bytes added, 03:47, 20 जुलाई 2010
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार= साँवर दइया |संग्रह=}}‎{{KKCatKavita‎}}<poemPoem>धरती को
इसी तरह रौंदी-कुचली
देखता हूंहूँजव देखता हूं हूँ आकाश को
इसी तरह अकड़े-ऎंठे
देखता हूंहूँ
अब मैं
किस-किस से कहता फिरूंफिरूँआपना अपना दुख -यह धरती : मेरी मां माँ !
यह आकाश : मेरा पिता !
'''अनुवाद : नीरज दइया'''
</poem>
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