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जीवन की अँधियारी रात हो उजारी !
धरती पर धरो चरण तिमिर-तमहारीपरम तम हारी परम व्योमचारी!चरण धरो, दीपंकर, जाए कट तिमिर-पाश!दिशि-दिशि में चरण धूलि छाए बन कर-प्रकाश!आओ, नक्षत्र-पुरुष,गगन-वन-विहारीपरम विहारी परम व्योमचारी!आओ तुम, दीपों कोनिरावरण को निरावरण करे निशा!चरणों में स्वर्ण-हासबिखरा हास बिखरा दे दिशा-दिशा!पा कर आलोक, मृत्यु-लोक हो सुखारीनयन सुखारी नयन हों पुजारी!२०:३३, ५ मई २००८ (UTC)२०:३३, ५ मई २००८ (UTC)२०:३३, ५ मई २००८ (UTC)२०:३३, ५ मई २००८ (UTC)~
सुख सुहाग की दीव्य ~ ज्योति से,
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