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Kavita Kosh से
पलने लगे मकड़े
बुनते चले गए विषैले तार
उलझने लगे पावँपाँव
चूसने लगे रक्त
फूलने लगे मकड़े
खोलने लगे दरवाजेदरवाज़े
खोलने लगे खिड़कियाँ
ना खुले तो