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Kavita Kosh से
मित्र !
जब धुंध जब इतनी घिर जाये जाए
कि शीशे के पार कुछ दिखाई ना दे
तब -
फिर
शीशे के पार देखना
सब कुछ साफ़ -साफ़ दिखने लगेगा
मैं तो वहीँ वहीं खड़ा था
जहाँ अब दिखाई देने लगा हूँ
सिर्फ धुंध ने तुम्हे
बहका रखा था
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