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माहिये-३ / रविकांत अनमोल

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=रविकांत अनमोल |संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poem>'''११'''भीगी सी फ़ज़ाएं फ़ज़ाएँ हैं।आंसू आंखों आँसू आँखों में,होंटों पे दुआएं दुआएँ हैं।'''१२'''अलमस्त हवाएं हवाएँ हैं
मौसम भीगा सा,
खुशरंग फ़ज़ाएं फ़ज़ाएँ हैं।'''१३'''ख़ुशरंग गुलाबों सा।सा ।
आँख में रहता है
तेरा रूप है ख़ाबों सा।सा ।'''१४'''पत्तों का है रंग पीला।पीला ।
अश्क़ों की बारिश ने
चिट्ठी को किया गीला।गीला ।'''१५'''दिन रैन बरसते हैं।हैं ।
दीद की चाहत में
दो नैन तरसते हैं।हैं ।
</poem>
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