{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=हरीश भादानी|संग्रह=आड़ी तानें-सीधी तानें / हरीश भादानी}}{{KKCatGeet}}<poem>साँसों की अँगुली थामे जो
आए क्वांरी साध तो
गीतों से माँग संवार दूँ
मैं रागों से सिंगार दूँ
संकेतों की मनुहार दूँ
साँसों की अँगुली थामे जो.....
गीतों के आखर को सुर्खी
सौ आँसू उस पर वार दूँ
आशाओं के उपहार दूँ
साँसों की अँगुली थामे जो.....
मेरे गीतों को ढलुआनें
मैं दो का भेद बिसार दूँ
परछाई सा आकार दूँ
साँसों की अँगुली थामे जो.....
मेरे गीतों को गदराया
मैं धुँधले पंथ निखार दूँ
मैं सारा सफर गुजार दूँ
सांसों की अँगुली थामे जो.....
मेरे गीतों में सागर की
मैं रागों से सिंगार दूँ
संकेतों की मनुहार दूँ
साँसों की अँगुली थामे जो</poem>