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आँखों में गुलस्तान गुलसितान थे, ख़्वाबों के, खो गए
ख़ुश्बू भरे बदन वो, गुलाबों के खो गए
क़िस्से वो इंक़लाबी, किताबों के खो गए
तक़दीर वारिसों को भी, ग़ुरबत में ले गईमिलते नहीं निशान, नवाबों के , खो गए
उलझन में घिर गया है, हर इक शख़्स शहर का
अब सिलसिले भी शोख़, जवाबों के खो गए
बच्चे जो खिलखिला के हँसे, तो मुझे लगासुलगे हुए जो दिन थे, अज़ाबों के , खो गए
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