भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल
}}
<poem>
घर की फुटन में पड़ी औरतें
ज़िन्दगी काटती हैं
मर्द की मौह्ब्बत में मिला
काल का काला नमक चाटती हैं
जीती ज़रूर हैं
जीना नहीं जानतीं;
मात खातीं-
मात देना नहीं जानतीं
</poem>