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मौन ही मुखर है / विष्णु प्रभाकर
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05:38, 16 अगस्त 2010
कर देती थी आप्लावित
विस्तार को विराट के
कहते हैं
वह मौन हो गई है-
तन-मन को
दिगदिगन्त को
इसीलिए कहा है
महाजनों ने कि
अनिल जनविजय
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