भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|रचनाकार=नरेश सक्सेना
|संग्रह=
}}{{KKAnthologyChand}}{{KKCatKavita}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
सूनी सँझा, झाँके चाँद
मुँडेर पकड़ कर आँगना
हमें, कसम से, नहीं सुहाता-—
रात-रात भर जागना ।
रह-रह हवा सनाका मारे
यहाँ-वहाँ से बदन उघारे
पिछवारे का पीपल जाने-—
कैसे-कैसे वचन उचारे
जाने कब तक नीम पड़ेगा-—
'घी मिसरी' में पागना ।
ऐसे मौसम तुम बाहर हो
आँगन टपके परी निबौरी
जैसे हैम हैं अपने, वैसे हों-—दुश्मन के भी भागना भाग ना । हमें, कसम से, नहीं सुहाता-—
रात-रात भर जागना ।
</poem>