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|रचनाकार=नरेश सक्सेना
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सूनी सँझा, झाँके चाँद
मुँडेर पकड़ कर आँगना
हमें, कसम से, नहीं सुहाता-
रात-रात भर जागना ।
रह-रह हवा सनाका मारे
यहाँ-वहाँ से बदन उघारे
पिछवारे का पीपल जाने-
कैसे-कैसे वचन उचारे
 जाने कब तक नीम पड़ेगा-
'घी मिसरी' में पागना ।
ऐसे मौसम तुम बाहर हो
आँगन टपके परी निबौरी
जैसे हैम हैं अपने, वैसे हों-दुश्मन के भी भागना भाग ना हमें, कसम से, नहीं सुहाता-
रात-रात भर जागना ।
</poem>
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