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पाणौ बाणशरासनं कटिलसत्तूणीरभारं वरम्<br>
राजीवायतलोचनं धृतजटाजूटेन संशोभितं<br>
सीतालक्ष्मणसंयुतं पथिगतं रामाभिरामं भजे।।2।।<br><br> 
सो0-उमा राम गुन गूढ़ पंडित मुनि पावहिं बिरति।<br>
पावहिं मोह बिमूढ़ जे हरि बिमुख न धर्म रति।।<br><br> 
पुर नर भरत प्रीति मैं गाई। मति अनुरूप अनूप सुहाई।।<br>
अब प्रभु चरित सुनहु अति पावन। करत जे बन सुर नर मुनि भावन।।<br>