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{{KKRachna
|रचनाकार=मुकेश मानस
|संग्रह=काग़ज़ एक पेड़ है / मुकेश मानस
}}
{{KKCatKavita
}}
<poem>
आग रोटी पकाती है
आग हिंस्र पशुओं से बचाती है
आग अंधेरा भगाती है
आग रास्ता दिखाती है
तरह-तरह के कारनामे करती है आग।
एक आग
नौजवानों के बाजुओं में जलती है
नौजवानों के बाजुओं में
सच्चाईयों का लहू होता है
सच्चाईयों के लहू को
नदियों में नहीं डुबाया जा सकता है
कि सच्चाईयों के लहू में
नई दुनिया की नींव तपती है
गोर्की का उपन्यास ‘माँ’ पढ़ते हुए, 1990, पुरानी नोटबुक से
<poem>
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आग रोटी पकाती है
आग हिंस्र पशुओं से बचाती है
आग अंधेरा भगाती है
आग रास्ता दिखाती है
तरह-तरह के कारनामे करती है आग।
एक आग
नौजवानों के बाजुओं में जलती है
नौजवानों के बाजुओं में
सच्चाईयों का लहू होता है
सच्चाईयों के लहू को
नदियों में नहीं डुबाया जा सकता है
कि सच्चाईयों के लहू में
नई दुनिया की नींव तपती है
गोर्की का उपन्यास ‘माँ’ पढ़ते हुए, 1990, पुरानी नोटबुक से
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