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{{KKRachna
|रचनाकार=मुकेश मानस
|संग्रह=काग़ज़ एक पेड़ है / मुकेश मानस
}}
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}}
<poem>
इसमें उन लोगों का क्या कुसूर
जिन्हें मैं बहुत चाहता हूँ
और वो मेरी तरफ देखते भी नहीं
शायद जानते ही नहीं मुझे
और इसमें मेरा भी क्या कुसूर
कि जो बहुत चाहते हैं मुझे
मैं उनका नाम तक नहीं जानता
उनकी शक्लो-सूरत भी नहीं पहचानता
इतने बड़े शहर में
अब किस-किस को पहचानें
और किस-किस को प्यार करें।
2006
<poem>
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इसमें उन लोगों का क्या कुसूर
जिन्हें मैं बहुत चाहता हूँ
और वो मेरी तरफ देखते भी नहीं
शायद जानते ही नहीं मुझे
और इसमें मेरा भी क्या कुसूर
कि जो बहुत चाहते हैं मुझे
मैं उनका नाम तक नहीं जानता
उनकी शक्लो-सूरत भी नहीं पहचानता
इतने बड़े शहर में
अब किस-किस को पहचानें
और किस-किस को प्यार करें।
2006
<poem>