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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=नागार्जुन]][[Category:कविताएँ]][[Category:|संग्रह=हज़ार-हज़ार बाहों वाली / नागार्जुन]]}}~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~{{KKCatKavita}}<poem>
अभी कल तक
गालियॉं देती तुम्हें
हताश खेतिहर,
अभी कल तक
धूल में नहाते थे
गोरैयों के झुंड,
अभी कल तक
पथराई हुई थीथी
धनहर खेतों की माटी,
अभी कल तक
धरती की कोख में
दुबके पेड़ थे मेंढक,
अभी कल तक
उदास और बदरंग था आसमान!
और आज
ऊपर-ही-ऊपर तन गए हैं
और आज
छमका रही है पावस रानी
बूँदा-बूँदियों की अपनी पायल,
और आज
चालू हो गई है
झींगुरो की शहनाई अविराम,
और आज
ज़ोरों से कूक पड़े
नाचते थिरकते मोर,
और आज
आ गई वापस जान
दूब की झुलसी शिरायों शिराओं के अंदर, और आज बिदा विदा हुआ चुपचाप ग्रीष्मग्रीष्मसमेटकर अपने लाव-लश्कर।लश्कर।</poem>